Skip to content

kisaan ki baat

बात किसान हित की

किसानों के लिए लाभदायक कीट
खेती में कीटों को अक्सर हानिकारक माना जाता है, लेकिन कुछ कीट कृषि उत्पादन और पारिस्थितिकी संतुलन के लिए फायदेमंद होते हैं। ये कीट परागण (Pollination) में मदद करते हैं, हानिकारक कीटों को नियंत्रित करते हैं, और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होते हैं।
1. परागण करने वाले लाभकारी कीट
(i) मधुमक्खियाँ (Honey Bees – Apis spp.)
⦁ फसलों और पेड़ों के परागण (Pollination) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
⦁ शहद और मोम जैसे उत्पादों से किसानों को अतिरिक्त आय मिलती है।
⦁ सरसों, सूरजमुखी, फल-सब्ज़ी की फसलों की पैदावार बढ़ाने में मदद करती हैं।
⦁ सरसों के खेत में मधुमक्खियाँ परागण से उत्पादन 15-20% तक बढ़ा सकती हैं।
(ii) तितलियाँ (Butterflies – Papilionidae, Nymphalidae, etc.)
⦁ फूलों के परागण में मदद करती हैं।
⦁ जैव विविधता बनाए रखने में सहायक होती हैं।
(iii) भृंग (Beetles – Coleoptera Order)
⦁ कुछ प्रकार के भृंग परागण में सहायता करते हैं, विशेष रूप से कमल और लिली जैसी फसलों में।
2. हानिकारक कीटों को खाने वाले लाभकारी कीट
(i) लेडी बर्ड बीटल (Ladybird Beetle – Coccinellidae)
⦁ यह छोटे कीटों जैसे *एफिड्स (Aphids), जैसिड्स (Jassids)* को खाकर फसलों को बचाती है।
⦁ प्राकृतिक रूप से हानिकारक कीटों की संख्या को नियंत्रित करती है।
⦁ एक लेडी बर्ड बीटल अपने जीवनकाल में 5,000 तक एफिड्स खा सकती है!
(ii) प्रेइंग मैंटिस (Praying Mantis – Mantodea Order)
⦁ टिड्डियों, मक्खियों और अन्य हानिकारक कीटों को खाकर फसलों की रक्षा करती है।
⦁ जैविक कीट नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(iii) सिकाडा किलर ततैया (Cicada Killer Wasp – Sphecius speciosus)
⦁ यह हानिकारक सिकाडा कीटों को नियंत्रित करने में मदद करती है।
(iv) ट्राइकोग्रामा परजीवी ततैया (Trichogramma Wasp)
⦁ तना छेदक और फली छेदक जैसे हानिकारक कीटों के अंडों को नष्ट कर देती है।
⦁ जैविक कीट नियंत्रण के लिए किसानों द्वारा इसका उपयोग किया जाता है।
3. मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने वाले लाभकारी कीट
(i) केंचुए (Earthworms – Lumbricidae Family)
⦁ मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं और जल धारण क्षमता सुधारते हैं।
⦁ कार्बनिक पदार्थों को विघटित कर मिट्टी में पोषक तत्व बढ़ाते हैं।
⦁ वर्मीकंपोस्ट बनाने में सहायक होते हैं।
⦁ केंचुए मिट्टी में प्राकृतिक रूप से जैविक खाद बनाते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता बढ़ती है।
(ii) डंग बीटल (Dung Beetles – Scarabaeidae Family)
⦁ गोबर को मिट्टी में मिलाकर उर्वरता बढ़ाने में मदद करता है।
⦁ मिट्टी में पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण करता है।
लाभकारी कीटों के उपयोग के फायदे
⦁ जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलता है।
⦁ हानिकारक कीटनाशकों के उपयोग को कम किया जा सकता है।
⦁ पर्यावरण और जैव विविधता सुरक्षित रहती है।
⦁ फसलों की उपज और गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
हानिकारक कीटों से होने वाले नुकसान एवं बचाव
खेती में कई प्रकार के कीट फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं। ये कीट पत्तियों, जड़ों, तनों, फूलों और फलों को खाकर फसल की पैदावार और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। इन कीटों से बचाव के लिए जैविक, यांत्रिक और रासायनिक विधियों का उपयोग किया जाता है।
1. प्रमुख हानिकारक कीट एवं उनके नुकसान
(i) चूसने वाले कीट (Sap-Sucking Insects)
ये कीट पौधों का रस चूसकर उनकी वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
1. एफिड (Aphids – ऐफिड्स)
नुकसान:
⦁ पत्तियों से रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं।
⦁ वायरस और अन्य बीमारियों को फैलाते हैं।
⦁ फसल का उत्पादन घट जाता है।
फसलें प्रभावित:
⦁ सरसों, मूंगफली, टमाटर, बैंगन, मिर्च, फूल गोभी आदि।
बचाव:
⦁ नीम का तेल (Neem Oil) छिड़काव करें।
⦁ लेडी बर्ड बीटल (Ladybird Beetle) जैसे लाभकारी कीटों का संरक्षण करें।
⦁ साबुन के पानी का छिड़काव करें।
2. जैसिड (Jassids – लीफ हॉपर)
नुकसान:
⦁ पत्तियों में पीले और भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
⦁ पौधे मुरझाने लगते हैं।
⦁ फसल की वृद्धि रुक जाती है।
फसलें प्रभावित:
⦁ कपास, भिंडी, बैंगन, टमाटर आदि।
बचाव:
⦁ पीले स्टिकी ट्रैप (Yellow Sticky Traps) लगाएँ।
⦁ नीम आधारित कीटनाशकों का छिड़काव करें।
⦁ उचित मात्रा में पानी और खाद का उपयोग करें।
3. सफेद मक्खी (Whitefly – Bemisia tabaci)
नुकसान:
पौधों का रस चूसकर उन्हें कमजोर कर देती है।
⦁ विषाणु रोग (Viral Diseases) फैलाती है।
फसलें प्रभावित:
⦁ कपास, टमाटर, भिंडी, गन्ना आदि।
बचाव:
⦁ पीले स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करें।
⦁ ट्राइकोग्रामा परजीवी ततैया (Trichogramma Wasp) का संरक्षण करें।
⦁ जैविक नीम तेल का छिड़काव करें।
(ii) पत्तियाँ और तना खाने वाले कीट (Leaf & Stem Eating Insects)
4. तना छेदक कीट (Stem Borer – Scirpophaga incertulas)
नुकसान:
⦁ तनों में सुरंग बनाकर पौधों को कमजोर कर देते हैं।
⦁ फसल का उत्पादन 30-40% तक कम कर सकते हैं।
फसलें प्रभावित:
⦁ धान, गन्ना, मक्का, बाजरा।
बचाव:
⦁ फेरोमोन ट्रैप (Pheromone Traps) का उपयोग करें।
⦁ प्रभावित तनों को काटकर हटा दें।
⦁ ट्राइकोग्रामा ततैया (Trichogramma Wasp) का संरक्षण करें।
5. फल छेदक कीट (Fruit Borer – Helicoverpa armigera)
नुकसान:
⦁ फल के अंदर छेद कर उन्हें सड़ा देते हैं।
⦁ उत्पादन और गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है।
फसलें प्रभावित:
⦁ टमाटर, मिर्च, भिंडी, कपास।
बचाव:
⦁ नीम आधारित कीटनाशकों का छिड़काव करें।
⦁ फेरोमोन ट्रैप लगाएँ।
⦁ ट्राइकोग्रामा ततैया का उपयोग करें।
6. पत्ती लपेटक (Leaf Folder – Cnaphalocrocis medinalis)
नुकसान:
⦁ पत्तियों को मोड़कर अंदर छिपकर खाती हैं।
⦁ पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता कम हो जाती है।
फसलें प्रभावित:
⦁ धान, मूंगफली, कपास।
बचाव:
⦁ फेरोमोन ट्रैप लगाएँ।
⦁ प्रभावित पत्तियों को हटा दें।
⦁ जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करें।
(iii) जड़ें खाने वाले कीट (Root Eating Insects)
7. सफेद ग्रब (White Grub – Holotrichia consanguinea)
नुकसान:
⦁ पौधों की जड़ों को काटकर नुकसान पहुँचाते हैं।
⦁ पौधे पीले पड़कर मर सकते हैं।
फसलें प्रभावित:
⦁ आलू, मूंगफली, गन्ना।
बचाव:
⦁ खेत की गहरी जुताई करें।
⦁ नीम खली और जैविक खाद डालें।
⦁ मेटारहिजियम (Metarhizium) जैविक फफूंद का प्रयोग करें।
2. हानिकारक कीटों से बचाव के उपाय
1. जैविक कीट नियंत्रण (Biological Control):
⦁ लाभकारी कीटों जैसे लेडीबर्ड बीटल, ट्राइकोग्रामा ततैया, मकड़ी का संरक्षण करें।
⦁ नीम का तेल और जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करें।
2. यांत्रिक नियंत्रण (Mechanical Control):
⦁ पीले और नीले स्टिकी ट्रैप (Sticky Traps) लगाएँ।
⦁ प्रभावित पौधों और पत्तियों को हटाकर जला दें।
3. सांस्कृतिक विधियाँ (Cultural Methods):
⦁ फसल चक्र (Crop Rotation) अपनाएँ।
⦁ खेत में खरपतवार को साफ रखें।
4. फेरोमोन ट्रैप (Pheromone Traps):
⦁ कीटों को आकर्षित करके पकड़ने के लिए फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करें।
5. जैविक कीटनाशकों का उपयोग:
⦁ नीम तेल, बीटी बैक्टीरिया (Bacillus thuringiensis), बवेरिया बेसियाना (Beauveria bassiana) का छिड़काव करें।

6. रासायनिक कीटनाशक (Chemical Pesticides) – केवल आपातकाल में
⦁ अत्यधिक हानिकारक कीटों के प्रकोप की स्थिति में **कम हानिकारक कीटनाशकों** का सीमित मात्रा में उपयोग करें।

आधुनिक युग में खरपतवार और कीटनाशकों से होने वाली हानियाँ
खेती में खरपतवार और कीटों से बचाव के लिए रासायनिक खरपतवारनाशक (Herbicides) और कीटनाशक (Pesticides) का अत्यधिक प्रयोग हो रहा है। हालांकि, ये उत्पाद किसानों को तात्कालिक लाभ देते हैं, लेकिन इनके अधिक उपयोग से मिट्टी, पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और जैव विविधता पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ते हैं। आइए इन हानियों को विस्तार से समझते हैं।
⦁ मिट्टी की गुणवत्ता पर असर
हानि:
⦁ अत्यधिक रासायनिक खरपतवारनाशक और कीटनाशक **मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया और फफूंद) को नष्ट कर देते हैं**, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है।
⦁ मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा घट जाती है, जिससे जल धारण क्षमता कम हो जाती है।
⦁ मिट्टी में रासायनिक अवशेष (Residues) जमा होते हैं, जो कई वर्षों तक फसलों में नुकसान पहुंचाते हैं।

उदाहरण:
⦁ ग्लाइफोसेट (Glyphosate), पैराक्वाट (Paraquat) जैसे खरपतवारनाशक मिट्टी की उर्वरता को कम कर सकते हैं।
समाधान:
⦁ जैविक खाद और कंपोस्ट का उपयोग करें।
⦁ खरपतवार नियंत्रण के लिए मैकेनिकल विधियाँ (Hand Weeding, Mulching) अपनाएँ।
2. जल स्रोतों पर प्रभाव
हानि:
⦁ रासायनिक कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के उपयोग से नदी, झील और भूजल में विषैले पदार्थ मिलते हैं, जिससे पानी दूषित हो जाता है।
⦁ ये रसायन पीने के पानी में मिलकर स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
⦁ जल में मौजूद मछलियों और अन्य जलीय जीवों को नुकसान होता है।
उदाहरण:
⦁ एट्राजीन (Atrazine) एक हानिकारक खरपतवारनाशक है, जो जल स्रोतों को प्रदूषित करता है और जलीय जीवों के लिए घातक होता है।
समाधान:
⦁ खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल चक्र और मल्चिंग (Mulching) अपनाएँ।
⦁ जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करें।
3. पर्यावरण और जैव विविधता पर असर
हानि:
⦁ कीटनाशक मधुमक्खियों, तितलियों और अन्य परागण करने वाले कीड़ों को मार देते हैं, जिससे फसलों की परागण कम हो जाती है और उत्पादन घटता है।
⦁ पक्षी, मेंढ़क और अन्य वन्यजीव भी इन रसायनों से प्रभावित होते हैं।
⦁ हवा में उड़ने वाले ये रसायन वायुमंडल को प्रदूषित करते हैं।
उदाहरण:
⦁ डी.डी.टी. (DDT) के अत्यधिक उपयोग के कारण कई पक्षी प्रजातियों की संख्या में गिरावट आई थी।
समाधान:
⦁ प्राकृतिक कीट नियंत्रण विधियाँ अपनाएँ।
⦁ जैविक कृषि अपनाकर पर्यावरण को सुरक्षित करें।
4. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव**
हानि:
⦁ त्वचा रोग, फेफड़ों की समस्या और कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ हो सकती हैं।
⦁ अत्यधिक कीटनाशकों के संपर्क में आने से हॉर्मोन असंतुलन और प्रजनन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
⦁ फसलों में बचे रसायनों के अंश खाने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं।
उदाहरण:
⦁ ग्लाइफोसेट (Glyphosate) और पैराक्वाट (Paraquat) को कैंसर से जोड़कर देखा गया है।
समाधान:
⦁ जैविक खेती अपनाएँ।
⦁ फसल कटाई से पहले सुरक्षित अंतराल (Pre-Harvest Interval) का पालन करें।
5. कीटों में प्रतिरोधक क्षमता (Resistance) विकसित होना
हानि:
⦁ लगातार एक ही प्रकार के कीटनाशक का उपयोग करने से कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है, जिससे वे कीटनाशकों के प्रभाव से बच जाते हैं।
⦁ किसानों को अधिक मात्रा में और अधिक जहरीले कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है, जिससे लागत बढ़ती है और पर्यावरण को अधिक नुकसान होता है।
उदाहरण:
⦁ फसलों में “सफेद मक्खी” और “हीलियोथिस” जैसे कीटों ने कई कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है।
समाधान:
⦁ आईपीएम (Integrated Pest Management) अपनाएँ।
⦁ फसल चक्र और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें।
6. कृषि लागत में वृद्धि
हानि:
⦁ खरपतवारनाशकों और कीटनाशकों की कीमतें अधिक होती हैं, जिससे किसानों की कृषि लागत बढ़ जाती है।
⦁ अधिक मात्रा में इनका उपयोग करने से किसानों को लाभ कम और नुकसान अधिक होता है।
समाधान:
⦁ प्राकृतिक खरपतवार और कीट नियंत्रण विधियाँ अपनाएँ।
⦁ जैविक खेती और मिश्रित खेती का प्रयोग करें।
निष्कर्ष
⦁ खरपतवारनाशकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग पर्यावरण, मिट्टी, जल, जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।
⦁ इन रसायनों के अधिक उपयोग से खेती की लागत भी बढ़ती है और उत्पादन की गुणवत्ता घटती है।
⦁ प्राकृतिक और जैविक खेती के माध्यम से इन हानियों को कम किया जा सकता है।
⦁ हानिकारक कीट फसलों की उपज और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन सही प्रबंधन से इनका नियंत्रण किया जा सकता है।
⦁ जैविक और प्राकृतिक कीट नियंत्रण विधियों को प्राथमिकता दें ताकि पर्यावरण और मिट्टी की उर्वरता सुरक्षित रहे।
⦁ फसल सुरक्षा के लिए फेरोमोन ट्रैप, जैविक कीटनाशकों और लाभकारी कीटों का संरक्षण करें।
🌱 “स्मार्ट फार्मिंग अपनाएँ, कीटों को दूर भगाएँ!”
🌱 “लाभकारी कीटों को पहचानें और उनका संरक्षण करें, जिससे खेती अधिक उन्नत और टिकाऊ बन सके!”
🌱 “सुरक्षित कृषि अपनाएँ, पर्यावरण और स्वास्थ्य बचाएँ!”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *